॥ सप्तवार व्रत कथा ॥
Saptvar Vrat Katha in Hindi
सप्ताह में सात दिन होते हैं और प्रत्येक दिन के लिये इष्ट देवी अथवा देवता को माना गया है । अत: हम अपनी इच्छानुसार किसी भी देवी – देवता को प्रसन्न करने के लिये उनसे संरक्षित वार को व्रत एवं उपासना करते हैं । कुछ मनुष्य अपने ग्रह तथा राशि के फल के अनुसार भी व्रत करते हैं । सोमवार को मुख्यत: शिव जी का वार कहा जाता है । इस वार को हम व्रत तथा पूजन करके शिव जी तथा माता पार्वती को प्रसन्न कर सकते हैं और अपने अभीष्ट की पूर्ति के लिये प्रार्थना करते हैं । मंगलवार को बजरंग बली हनुमान जी की पूजा तथा उपासना की जाती है । बुधवार रिद्धि-सिद्धि प्रदायक गणेशजी के व्रत का वार है । वृहस्पतिवार को भगवान विष्णु तथा वृहस्पति देव की पूजा की जाती है। शुक्रवार को माँ संतोषी का वार है जो हमें संतोष तथा सुख समृद्धि प्रदान करती है। शनिवार को शनि देव तथा रामभक्त हनुमान जी की पूजा का विधान है । रविवार को सारे जगत को रोशनी प्रदान करने वाले सुर्य देव की अराधना की जाती है ।
पूजा विधान - ध्यान योग्य बातें
१. गणेश जी, शिव जी, विष्णु जी, दुर्गा जी एवं सुर्य देव, ये हमारे पंच देव हैं। पंच देव की पुजा गृहस्थाश्रम में प्रतिदिन करने से धन, लक्ष्मी और सुख की प्राप्ति होती है।
२. तुलसी दल गणेश जी, शिव जी और भैरव जी को नही चढाना चाहिये ।
३. शंख से भगवान सुर्य को जल नही चढाना चाहिये ।
४. तुलसी का पत्ता स्नान करने के बाद ही तोड़ना चाहिये ।
५. एकादशी, द्वादशी ,संक्रान्ति ,रविवार एवं संध्याकाल को तुलसी का पत्ता तोड़ना निषेध माना गया है।
६. शंकर भगवान को केतकी का फूल नहीं चढ़ाते ।
७. शंकर भगवान को लाल चंदन नही चढाना चाहिये ।
८. कमल के फूल को पाँच रात्रि तक, तुलसी- दल ग्यारह रात्रि तक तथा बेल-पत्र को दस रात्रि तक जल छिड़ककर चढ़ा सकते हैं ।
९. फूल को किसी पात्र में लेकर हीं चढ़ायें , एक हाथ में लेकर दूसरे हाथ से फूल नहीं चढ़ाना चाहिये।
१०. दीपक से दीपक जलाने वाला रोगी होता है , इसलिये दीपक से दीपक न जलायें ।
११. चंदन को ताँबे के पात्र में ना रखें ।
१२. प्लास्टिक या चर्म पात्र में गंगाजल ना रखें ।
१३. पतला चंदन भगवान को नहीं समर्पित करना चाहिये ।
१४. देवी- देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करनी चाहिये । सुबह 5 बजे से 6 बजे (ब्रह्म बेला) में प्रथम पूजन और आरती , प्रात: 9 से 10 बजे तक द्वीतीय पूजन और आरती, 12 बजे से पहले ( मध्याह्न में ) तीसरा पूजन और आरती होनी चाहिये। उसके बाद शयन करा देना चाहिये। शाम को 4 से 5 बजे तक चौथा पूजन और आरती , रात्रि में 8 से 9 बजे तक पांचवा पूजन और आरती , तत्पश्चात् शयन कराना चाहिये ।
१५. प्रथम चरणों की चार बार , नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार और समस्तअंगों की सात बार आरती करनी चाहिये ।
१६. पूजा के समय साधक का मुख हमेशा पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर होना चाहिये ।
१७. पूजा हमेशा ऊनी आसन या कम्बल अथवा कुशासन पर बैठ कर करनी चाहिये ।
१८. पूजागृह में सुबह एवं शाम को घी का दीपक जलायें ।
१९. पूजा के बाद अपने स्थान पर हीं तीन बार घूमकर परिक्रमा करे ।
२०. पूजाघर में 11 इंच से ज्यादा बड़ी मूर्ति ना रखें ।
२१. गणेश जी , लक्ष्मी जी तथा सरस्वती जी की खड़ी मूर्ति घर में ना रखें ।
२२. प्रत्येक घर में तुलसी का एक पौधा जरूर होना चाहिये ।
२३. अपने पूर्वजों के फोटो को पूजागृह में नहीं रखना चाहिये । उन्हें हमेशा नैऋत्य कोण में रखें ।
२४. शिवलिंग दो , गणेश या देवी की मूर्ति तीन-तीन , शालिग्राम दो, सुर्य प्रतिमा दो, गोमतीचक्र दो की संख्या में नहीं रखनी चाहिये ।
२५. खंडित, टूटी हुई , जली हुई भगवान की मूर्ति या चित्र घर में नहीं रखें । उसे तुरंत किसी मंदिर अथवा नदी में विसर्जित कर दें ।
२६. मंदिर के ऊपर कोई भी सामान ना रखें ।
२७. घर के मंदिर में परदा अवश्य लगायें।