Amalaki Ekadashi Vrat Katha: आज हम आमलकी एकादशी व्रत की पूजा विधि और कथा के बारे में जानेंगे। आए जानते है आमलकी एकादशी व्रत के बारे में।
आमलकी एकादशी पूजा विधि | Amalaki Ekadashi Puja Vidhi
इस दिन आँवले के वृक्ष के नीचे कलश स्थापित कर धूप, दीप ,नवैध, पंचरत्न आदि से परशुराम भगवान की पूजा की जाती है।
आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amalaki Ekadashi Vrat Katha
प्राचीन समय में एक वैदिक नामक नगर में ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, शुद्र चारों वर्ण आनन्दपूर्वक रहते थे। उस नगर में चैत्ररथ नामक चन्द्रवंशी राजा था। वह महाविद्वान तथा धार्मिक था, वहाँ के निवासी वृद्ध से बालक, प्रत्येक एकादशी का व्रत करते थे। एक समय फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी नामक एकादशी आई। उस दिन राजा से प्रजा तक वृद्ध से बालक तक सबने हर्ष सहित उस एकादशी का व्रत किया। राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर पूर्ण कुम्भ स्थापित करके तथा धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न, क्षत्र आदि से धात्री का पूजन करने लगे।
वे सब धात्री की इस प्रकार स्तुति करने लगे- ‘हे धात्री! आप ब्रह्म स्वरूपा हो। आप ब्रह्मा जी द्वारा उत्पन्न हो और सभी पापों को नष्ट करने वाली हो, आपको नमस्कार है। अब आप अर्घ्य स्वीकार करो। आप श्री रामचन्द्र जी द्वारा सम्मानित हो। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ। मेरे समस्त पापों का हरण करो।’ उस मंदिर में रात्रि को सभी ने जागरण किया। रात्रि के समय उस जगह एक बहेलिया आया। वह महापापी तथा दुराचारी था। वह भूखा प्यासा था। उस जगह विष्णु भगवान की कथा तथा एकादशी माहात्म्य सुनने लगा।
बहेलिया ने रात्रि को अन्य लोगों के साथ जागकर व्यतीत किया। प्रातः काल होते ही सभी लोग अपने-अपने घर पर चले गए। कुछ समय बीतने के पश्चात उस बहेलिया की मृत्यु हुई और उस आमलकी की एकादशी के व्रत तथा जागरण के प्रभाव से उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया। उसका नाम बसुरथ रखा गया। बड़ा होने पर वह चतुरंगिणी सेना के सहित तथा धन-धान्य से युक्त होकर दस सहस्र ग्रामों का पालन करने लगा। वह तेज में सूर्य के, कांति में चन्द्रमा के, वीरता में विष्णु भगवान के तथा क्षमा में पृथ्वी के समान था। वह अत्यंत धार्मिक, सत्यवादी, कर्मवीर और विष्णु भक्त था। वह सदैव यज्ञ किया करता था।
एक बार राजा बसुरथ शिकार खेलने के लिये गया। दैवयोग से वह राजा रास्ता भूल गया। तब वह उसी वन में एक वृक्ष के नीचे सो गया। उसी समय पहाड़ी डाकू वहाँ आये और राजा को अकेला देखकर मारो-मारो का शब्द करके टूट पड़े। वह डाकू कहने लगे कि इस दुष्ट राजा ने हमारे सम्बंधियों को मारा है तथा देश से निकाल दिया है। अतः इसे अब अवश्य मारना चाहिए। ऐसा कहकर वह डाकू राजा पर अस्त्र शस्त्र का प्रहार करने लगे। उनके अस्त्र शस्त्र राजा के शरीर पर लगते ही नष्ट हो जाते और उसको पुष्पों के समान प्रतीत होते।
उन डाकुओं के अस्त्र शस्त्र उन पर उल्टा प्रहार करने लगे। जिससे वे मूर्छित हो गए। उस समय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री प्रकट हुई। जो अत्यंत सुन्दर तथा सुन्दर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलंकृत थी। उसकी भृकुटी टेढ़ी थी, आंखों से लाल-लाल अग्नि निकल रही थी। वह डाकुओं को मारने दौड़ी और समस्त डाकुओं को काल के गाल में पहुँचा दिया। अब राजा जब जगा। तब इन डाकुओं को मरा हुआ देखकर सोचने लगा कि इन शत्रुओं को किसने मारा है।
जब वह राजा ऐसा विचार कर रहा था। तब ही आकाशवाणी हुई और कहने लगी- ‘हे राजन! इस संसार मे तेरी विष्णु भगवान के अतिरिक्त कौन रक्षा कर सकता है!’ इस आकाशवाणी को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आ गया और सुख पूर्वक राज करने लगा। जो मनुष्य इस आमलकी एकादशी का व्रत करते है। वे सब प्रत्येक कार्य में सफल होता है और अन्त में विष्णु लोक में जाते है।
FAQs About Amalaki Ekadashi Vrat Katha
Q1. आमलकी एकादशी कब है?
14 मार्च, सोमवार, 2022
Q2. आमलकी एकादशी में क्या खाना चाहिए?
इस दिन आप फल फ्रूट खाएं। लेकिन चावल ना खाएं।
Q3. आमलकी एकादशी व्रत का क्या महत्व है?
जो मनुष्य आमलकी एकादशी व्रत को रखता है उसके सभी कार्य सफल होते है और अन्त में विष्णु लोक में जाते है।